मानव शरीर मे दो प्रकार की कोशिकाए होती है - सोमेटिक सेल्स तथा जर्म सेल्स...
इसमे सोमेटिक सेल्स वो कोशिकाए होती है, जिनसे आपका शरीर बनता है। वहीं जर्म सेल्स वो होती है, जिनसे कोई नर या मादा अपने बच्चे पैदा करता है।
अब खास बात ये है कि ये दोनो सेल्स आपस मे मिक्स नही होती। जर्म सेल्स भ्रूण विकास के दौरान ही आपके शरीर की सोमेटिक सेल्स से अलग हो जाती है। अब आप जीवन भर दंड मारिये, पहलवान बनिये, शिक्षक बनिये या हवाई जहाज उड़ाइये - आपकी परिस्थिति, लालन-पालन, शिक्षा, पृष्ठभूमि इत्यादि से आपके शरीर मे जो भी बदलाव आएगे, वो सोमेटिक सेल्स के डीएनए मे आएंगे, जर्म सेल्स मे नही। अर्थात, आपकी क्षमताए जेनेटिक्स का नहीं, एपीजेनेटिक्स का विषय होती हैं।
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इस बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि - यानी आप कैसी संतान पैदा करेगे, इसका फैसला आपके पैदा होने से पूर्व तभी हो चुका होता है, जब आप गर्भ मे होते है। आपने बड़े होने के बाद अपने जीवन मे क्या किया, क्या उखाड़ा, क्या योग्यता अर्जित की - उसका शतांश भी आपकी होने वाली औलाद मे ट्रांसफर नही होने वाला।
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अब आप कहेगे कि जब कोई जीव अपनी किसी विशेषता को अगली पीढ़ी मे ट्रांसफर करता ही नही, तो हम एक कोशिका से इतने लंबे-चौड़े मानुष आखिर कैसे बन गए ?
इसका उत्तर यह है कि जीवो मे बदलाव डीएनए मे म्यूटेशन से आता है, जो कि एक रैंडम प्रोसेस है। अगर किसी जर्म सेल्स का डीएनए बाय चांस म्यूटेट हो जाए, और फिर से बाय चांस, उसी म्यूटेटेड सेल से बच्चा हो जाये तो अगली पीढ़ी मे बहुत छोटा सा माइनर बदलाव हो सकता है।
सुनने मे ये थोड़ा अविश्वसनीय लगता है पर मत भूलिए कि ये प्रक्रिया 4 अरब सालो से निरंतर पृथ्वी पर चल रही है और इतना लंबा समय जीवो मे बड़े बदलाव लाने के लिए काफी है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि - धरती पर आज तक जीवो मे जो भी बदलाव आये है, वो प्रकृति की योजनाओ का नही, बल्कि संयोगो का परिणाम है।
बातो का लब्बोलुआब यह भी है कि - आज आप एक जैव प्रजाति के तौर पर जो कुछ भी है, उसमे आपके पिताजी, दादा, परदादा अथवा 5-10-20 पीढ़ियो का कोई खास योगदान नही। अगर आप किसी टाइम मशीन से भूतकाल में 5 हजार पीछे जा कर किसी मनुष्य के बच्चे को वर्तमान मे ले आए, पढ़ाये-लिखाए तो उसके डॉक्टर-इंजीनियर-वैज्ञानिक बनने की प्रायिकता आज के बच्चो से कम नही होगी।
विकास एक बेहद धीमी प्रक्रिया है, इतनी धीमी कि चिंपैंजियो से हमारी शाखा अलग हुए आज लाखो वर्ष बीतने के बाद भी मनुष्यो की बेसिक हार्डवायरिंग तथा कॉन्फ़िगरेशन मे कोई बड़ा बदलाव नही आया है। आज भी इंसानो का डीएनए चिंपैंजी से 98% और पृथ्वी के किसी भी हिस्से मनुष्यो का डीएनए 99.99% मेल खाता है। धरती पर पैदा होने वाले सभी मनुष्य जेनेटिकल लेवल पर एक समान है। उनमे जो भिन्नताए दिखती है, उनका कारण एपीजेनेटिक्स अर्थात पैदा होने के बाद डीएनए मे आया बदलाव है।
इसे आप यूँ भी कह सकते है कि संसार के किसी भी हिस्से मे पैदा हुआ मनुष्य एक कोरी स्लेट के समान है। समान अवसरो और परवरिश के आधार पर मनुष्य के एक झुंड की औसत क्षमताए दूसरे झुंड के मनुष्यो के समान ही होती है।
इसलिए जन्मनाश्रेष्ठता मे विश्वास करने वाले लोगो को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रकृति ने किसी को जन्म से गुणवान नही बनाया। चरित्र का शील, देह का पराक्रम और बुद्धि की प्रखरता सिर्फ रक्त से हासिल नही होती। इसके लिए तो परवरिश नाम की बूटी लगती है। प्रस्तर तो जितना हथौड़ी-छेने की मार सहेगा, शिल्प उतना ही निखर कर बाहर आता है।
नस्ल से कोई श्रेष्ठ नही, दो मनुष्यो मे कोई भेद नही - यह बात मनुष्य समझ ले, उस दिन संसार के तमाम कलुष का अंत हो जाएगा।