विचित्र खगोलीय पिंड : कृष्ण विवर (Black hole)
सदियो से ब्रह्माण्ड मानव को आकर्षित करता रहा हैं। ब्रह्माण्ड की कई संकल्पनाओं ने मानवीय मस्तिष्क को हजारों वर्षों से उलझन में डाल रखा हैं। वर्तमान में वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड के सुदूर स्थित सूक्ष्म एवं स्थूलकाय सीमाओं तक पहुंच चुके हैं। ब्रह्माण्डीय परिकल्पनाओं एवं प्रेक्षणों द्वारा खगोलविदों को ब्रह्माण्ड के विचित्रताओं और रहस्यों के सबंध में पता चला। जैसे-जैसे ब्रह्माण्डीय संकल्पनाओं एवं पिंडों के बारे में हमारे ज्ञान में वृद्धि होती गईं, वैसे-वैसे और अधिक विचित्रताएँ हमारे सामने आती गईं। ब्रह्माण्ड की इन्हीं विचित्रताओं में से एक विचित्रता विशिष्ट हैं, जो वर्तमान में जिज्ञासुओं के मध्य चर्चा का प्रमुख कारण हैं – कृष्ण विवर अर्थात ब्लैक होल (Black Hole)। आपके समक्ष प्रस्तुत इस लेख में हम इन्हीं कृष्ण विवरों के संबंध में चर्चा करने जा रहें हैं, जिसकें गुणधर्म बहुत विचित्र होते हैं।
कृष्ण विवर अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसें पिंड होते हैं, जो आकार में बहुत छोटे होते हैं। इसके प्रबल गुरुत्वाकर्षण के चंगुल से प्रकाश की किरणों का भी निकलना असम्भव होता हैं। चूँकि इससे प्रकाश की किरणें भी बाहर नहीं निकल पाती हैं, अत: यह हमारें लिए अदृश्य बना रहता हैं।