मनुष्य चिम्पांजी के साथ इंटरफर्टाइल क्यो नही है ? :
मनुष्य के विकास पर प्रकाश डालते कुछ तथ्य -
विकास-क्रम मे चिम्पांजी मानव के सबसे पास के चचेरे भाई हैं और उनका डीएनए मानव से 98.8% मिलता है।
यहां प्रश्न यह उठता है कि यदि चिम्पांजी और मानव का डीएनए आपस में इतना मिलता है तो उनमें शारीरिक और बौद्धिक रूप से अंतर क्यों है और ये आपस में इंटरफर्टाइल क्यों नहीं हैं! अर्थात् यदि हम इन दोनों जातियों में से किसी एक का नर गैमीट और दूसरे का मादा गैमीट लें और मादा गैमीट को नर गैमीट से फर्टिलाइज कराने का प्रयास करें तो वह फर्टिलाइज क्यों नहीं होगा अथवा यदि फर्टिलाइज हो भी गया तो आगे एक संकर शिशु में विकसित क्यों नहीं होगा!
ठीक है, मनुष्य (Homo sapiens) और चिम्पांजी (Pan troglodytes) में केवल 1.2% जेनेटिक अंतर है, किन्तु प्रजातियों का प्रजनन सामंजस्य (रिप्रोडक्टिव कॉम्पैटिबिलिटी) देखने के लिए न केवल उनमें अंतर और साम्य का प्रतिशत महत्वपूर्ण होता है वरन् यह भी महत्वपूर्ण होता है कि वह अंतर कहां पर है और वह प्रजनन साम्य को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है।
मानव में 23 जोड़ी क्रोमोसोम्स होते हैं जबकि चिम्पांजी में 24 जोड़ी। चिम्पांजी के एक पूर्वज के उस वंशज - जहां से मानव-वंश कपि-वंश से अलग हुआ - में क्रोमोसोम-जोड़ी संख्या 12 और 13 आपस में मिल गए और उन्होंने मानव-वंश में क्रोमोसोम-जोड़ी संख्या 2 बनाई। यह पूर्वज मानव-वंश के इस चरण का पूर्वज था। क्रोमोसोम्स-जोड़ियों के इस मिलन के प्रमाण यह हैं कि 'टीलोमियर्स सीक्वेंस' - जो किसी क्रोमोसोम के अंत में होते हैं - मानव के क्रोमोसोम-जोड़े संख्या 2 के बीच में पाए जाते हैं जो कपियों के दो जोड़ी क्रोमोसोम्स के परस्पर जुड़ने को दिखाता है। इसके अतिरिक्त ह्यूमन क्रोमोसोम संख्या 2 में दो 'सेंट्रोमियर क्षेत्र' होते हैं जिनमें से एक बेकार होता है। यह भी दो क्रोमोसोम्स के विलय को दिखाता है। ह्यूमन क्रोमोसोम-जोड़ी संख्या 2 के 'बेंडिंग पैटर्न' और 'जीन अरेंजमेंट' चिम्पांजी के क्रोमोसोम-जोड़ियों 12 और 13 की संयुक्त संरचना से मिलते हैं। ये सब बातें हमारे कपि, और कपि-मानव, पूर्वजों में इन क्रोमोसोम्स के परस्पर विलय को दिखाती हैं।
यहां हल्का सा विषयांतर करते हुए मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं देखता हूं कि विकास-क्रम से मानव की उत्पत्ति के सिद्धान्त का विरोध करने वाले और 'स्पेशल क्रिएशन थ्योरी' का समर्थन करने वाले कुछ लोग एक कपि-पूर्वज से मानव के विकास के सिद्धान्त का विरोध करने के लिए यह कहते हैं कि मानव में 23 क्रोमोसोम्स होते हैं और कपियों में 48. तो यदि मानव कपियों से विकसित होकर बना है तो उसमें कपियों के मुकाबले क्रोमोसोम्स की संख्या घट कैसे गई! यह बात दिखाती है कि उन्हें न तो सही तथ्य मालूम हैं और न ही जेनेटिक्स का कोई ज्ञान है। मानव में क्रोमोसोम्स की संख्या 23 नहीं, 23 जोड़ी होती है - अर्थात् 46. यह मैंने बताया ही है कि किस प्रकार कपियों के दो जोड़ी क्रोमोसोम्स के आपस में जुड़ जाने के कारण मानव का एक जोड़ी क्रोमोसोम बना था। जैसा कि मैंने लिखा है, इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। क्या हमें प्रयास करके एक वैज्ञानिक और तार्किक विधि से उन प्रमाणों को ढूंढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए और फिर उन प्रमाणों को देखना चाहिए और उनके अनुसार अपना मत बनाना चाहिए अथवा अपने पूर्वाग्रहों के अनुसार चलना चाहिए और एक धारणा पहले बना कर उसके अनुसार बात करनी चाहिए? सही तरीका क्या है? हम गाड़ी के आगे घोड़े को जोतें अथवा घोड़े के आगे गाड़ी को? फिर, ऐसा नहीं होता है कि यदि कहीं पर किसी प्रजाति में पिछली प्रजाति से क्रोमोसोम्स की संख्या घट गई है तो वह प्रजाति पिछली प्रजाति से आगे का रूप नहीं हो सकती है। इस विषय में हमें अनेक बातों और तथ्यों को देखना होता है, जैसे - क्रोमोसोम्स की जटिलता, जीन्स का विन्यास, डीएनए में न्यूक्लियोटाइड्स की संख्या और अन्य अनेक बातें। आनुवंशिक विज्ञान और आण्विक जैव विज्ञान (मॉलीक्युलर बायोलॉजी) एक जटिल विषय है और ये बातें समझने के लिए इनके गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में मानव के इस प्रकार के विकास के प्रमाण मिलते हैं। आवश्यकता केवल खुले मन से उन्हें ढूंढ़ने, देखने और समझने की है।
अब हम अपने मूल विषय पर पुनः आते हैं। यदि दो प्रजातियां समान डीएनए के उच्च प्रतिशत को साझा भी करती हैं तो यह महत्वपूर्ण होता है कि उनका 'जीन एक्सप्रेशन' कैसा है, किस प्रकार के जीन्स अपना प्रभाव दिखा रहे हैं। ये बातें और कुछ छोटे-छोटे अंतर मस्तिष्क और शरीर-रचना को प्रभावित करके प्रजनन-तंत्र की परस्पर कॉम्पैटिबिलिटी को नियंत्रित करते हैं। इन बातों से मेटिंग व्यवहार, रिप्रोडक्टिव साइकिल और रिप्रोडक्टिव एनाटॉमी भी निर्धारित होती है। यदि हम पैट्री डिश में मानव और चिम्पांजी के स्पर्म और ओवा को फर्टिलाइज करने का प्रयास करें तो यह आम तौर पर संभव नहीं हो पाएगा। इसका कारण यह है कि भले ही उनके प्रोटीन्स बनाने के जीन्स मोटे तौर पर समान हैं, फिर भी कुछ छोटे-छोटे अंतरों के कारण एक प्रजाति का शुक्राणु दूसरी प्रजाति के ओवम के 'जोना पैल्यूसिडा' से जुड़ नहीं पाएगा और उसे भेद नहीं पाएगा। यदि ऐसा हो भी गया तो उन अंतरों के कारण ज़िग्गोटे (निषेचित अण्डा) में माइटॉटिक सेल डिवीजन नहीं हो पाएगा और वह एम्ब्रियो में विकसित नहीं हो पाएगा। इसके अतिरिक्त ऐसी स्थिति में एक ओर से 23 क्रोमोसोम्स आएंगे और दूसरी ओर से 24. यह एक डिस्पैरिटी होगी। इसमें क्रोमोसोम्स के जोड़े नहीं बन पाएंगे और उनमें कोशिका-विभाजन नहीं हो पाएगा। यदि दोनों प्रजातियों में अंतर बहुत कम है और इस प्रकार के ज़िग्गोटे में कोशिका-विभाजन होकर एक नया प्राणी बन गया तो उसमें मीऑटिक सेल डिवीजन नहीं हो पाएगा और उसमें गैमीट्स नहीं बन पाएंगे (मैं यहां पर माइटॉटिक और मीऑटिक सेल डिवीजन के विस्तार में नहीं जा रहा हूं - विज्ञान की शिक्षा में ये कक्षा 8 और 9 की बातें हैं)। इस प्रकार वह संतान बांझ होगी। उदाहरण के लिए घोड़े में 32 जोड़ी क्रोमोसोम्स होते हैं और गधे में 31 जोड़ी। इनके गैमीट्स में क्रमशः 32 और 31 क्रोमोसोम्स होते हैं। इस प्रकार एक खच्चर में 63 क्रोमोसोम्स होते हैं जो एक विषम संख्या होने के कारण इनके जोड़े नहीं बन पाते हैं और इसलिए उनमें मीऑटिक सेल डिवीजन नहीं हो पाता है, इसलिए उनमें गैमीट्स नहीं बन पाते हैं और वह स्टेराइल होता है।
मानव और चिम्पांजी का डीएनए बहुत हद तक मिलता है। इसका अर्थ यह है कि उनके 'न्यूक्लियोटाइड बेसेज' का 'सीक्वेंस' मिलता है। दोनों प्रजातियों में ये न्यूक्लियोटाइड बेसेज डीएनए में काफी हद तक एक ही स्थान पर मिलते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम मानव और चिम्पांजी के डीएनए को देखें तो उनमें चार न्यूक्लियोटाइड बेसेज - एडिनीन, थायमीन, ग्वेनिन और साइटोसिन (ATGC) का क्रम इस प्रकार होगा -
मानव - ATGCGTACGTTAGC
चिम्पांजी - ATGCGTACGTCAGC
हम देख रहे हैं कि इनमें केवल एक स्थान पर थायमीन के स्थान पर साइटोसिन है। शेष सारे बेसेज एक समान हैं। इन दोनों ही प्रजातियों में अनेक प्रोटीन्स और शरीर-रचना को बनाने वाले जीन्स समान होते हैं। उदाहरण के लिए दोनों में ही FOXP2 जीन होता है जो बोलने और भाषा से जुड़ा होता है। दोनों ही प्रजातियों में यह जीन लगभग समान होता है। लेकिन उन दोनों प्रजातियों में इसमें मामूली अंतर होता है और इस कारण ही मनुष्य में एक विकसित स्पीच संभव होती है, चिम्पांजी में नहीं। इसी प्रकार मानव और चिम्पांजी - दोनों में - HAR1 जीन होता है जो मस्तिष्क के विकास के लिए उत्तरदायी होता है। किन्तु मानव में चिम्पांजी के मुकाबले इसमें कुछ मामूली अंतर होते हैं, जिस कारण मानव और चिम्पांजी के मस्तिष्क की रचना और कार्य-विधि में अंतर होता है। इन दोनों ही प्रजातियों में न्यूक्लियोटाइड बेसेज का सीक्वेंस लगभग समान होने पर भी जीन्स और क्रोमोसोम्स का ऑर्गेनाइजेशन कुछ अंतर रखता हुआ होता है, जैसे क्रोमोसोम संख्या 2 में। इसके अतिरिक्त इनकी 'फंक्शनल सिमिलैरिटी' और 'जीन एक्सप्रेशन' और रेगुलेशन काफी हद तक एक होते हुए भी उनमें मामूली अंतर होता है और यही अंतर दोनों प्रजातियों में अंतर को बनाता है।
तो यह बहुत से कारण हैं जिनके कारण मानव व चिम्पांजी का डीएनए आपस में 98.8% मिलते होने के बावजूद वह परस्पर संतान उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। इनके जीन्स में यह अंतर हमें इनके शरीरों और मस्तिष्क और वाणी में अंतर के कारणों को दिखाता है।
चूहे के डीएनए के न्यूक्लियोटाइड्स का सीक्वेंस मानव के साथ 85% मिलता है, इसके प्रोटीन कोडिंग जीन्स मानव के साथ 97% मिलते हैं और जीन्स फंक्शनल सिमिलैरिटीज 99% मिलती हैं।
दुनिया भर के इंसानों के डीएनए में बहुत सूक्ष्म अंतर होते हैं। उनके डीएनए परस्पर 99.9% मिलते हैं। लेकिन जो पॉइंट वन परसेंट के सूक्ष्म अंतर होते हैं, वही दुनिया भर के इंसानों की शक्ल-सूरत में अंतर लाने के लिए पर्याप्त होते हैं। वही उन सब की उंगलियों के निशानों में अंतर लाते हैं क्योंकि उन सब की प्रोटीन्स अलग-अलग होती हैं। वही सूक्ष्म अंतर उनके बालों, आंखों और त्वचा के रंग और मस्तिष्क की बनावट और उनकी बुद्धि अधिक अथवा कम होने को नियंत्रित करते हैं। वही सूक्ष्म अंतर अनेक जेनेटिक बीमारियों के होने अथवा न होने को नियंत्रित करते हैं। मानव के एक डीएनए के डबल हैलीकल स्ट्रैंड्स में 6.4 अरब न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं (यहां मैं डीएनए की संरचना, उनके न्यूक्लियोटाइड्स उनके नाइट्रोजन बेसेज, न्यूक्लियोसाइड्स और जीन्स आदि पर नहीं जा रहा हूं - मैं आशा करता हूं कि विज्ञजन इनको जानते होंगे)। इनका 0.1% 64 लाख न्यूक्लियोटाइड्स हुआ जिनमें अनेक प्रकार के वैरिएशन्स संभव होते हैं और ये अरबों तरह के अंतर ला सकते हैं। केवल 6.4 मिलियन न्यूक्लियोटाइड-अंतर अरबों अलग-अलग प्रकार के मानव कैसे उत्पन्न कर सकते हैं, इसके कुछ कारण निम्न हैं -
1. कुछ 'की जीन्स' फिजिकल ट्रेट्स को कंट्रोल करते हैं। कुछ रेगुलेटरी जीन्स में छोटे-छोटे अंतर अनेक प्रकार के फेशियल फीचर्स को सामने ला सकते हैं। जैसे EDAR जीन बालों की मोटाई, घनेपन और श्वेत ग्रंथियों की संख्या को नियंत्रित करता है। MC1R जीन त्वचा और बालों के रंग को नियंत्रित करता है। बालों के सीधे अथवा घुंघराले होने को भी एक अन्य जीन नियंत्रित करता है।
2. छोटे-छोटे अंतरों का मिश्रण बड़ी संख्या में विभिन्न फीचर्स को उत्पन्न करता है। अधिकांश शारीरिक लक्षण 'पॉलीजेनिक' होते हैं - अर्थात् ये विभिन्न जीन्स द्वारा एक साथ नियंत्रित होते हैं। उन मल्टीपल जीन्स में छोटे-छोटे अंतर बहुत बड़ी संख्या में विभिन्न अंतर सामने ला सकते हैं। उदाहरण के लिए हमारी नाक की आकृति PAX3, GLI3 और RUNX2 जीन्स के एक साथ काम करने से तय होती है और किसी भी जीन में मामूली अंतर नाक की कुछ विभिन्न आकृति को सामने ला सकता है।
3. इपीजेनेटिक्स और वातावरण का प्रभाव - यदि दो लोगों का डीएनए समान भी है तो उनमें 'जीन एक्सप्रेशन' अंतर रखता हुआ हो सकता है। इसीलिए लाइफस्टाइल और रैंडम चांसेज के कारण आईडेंटिकल ट्विन्स भी अंतर रखते हुए होते हैं। 100% डीएनए शेयर करने के बाद भी उंगलियों के निशानों में अंतर हो सकता है। यह अंतर प्रोटीन में अंतर के अतिरिक्त गर्भावस्था की स्थितियों पर भी निर्भर करता है। इपीजेनेटिक्स जेनेटिक्स विज्ञान की एक बहुत विस्तृत और महत्वपूर्ण शाखा है जो किसी जीव-जाति के सदस्यों में साम्य और अंतर पर गंभीर प्रकाश डालती है। इसे केवल कुछ पंक्तियों में नहीं बताया जा सकता है।
4. लैंगिक प्रजनन और रिकॉम्बीनेशन - मीऑसिस के समय डीएनए की शफलिंग में यूनीक फीचर्स निर्मित होते हैं इसीलिए सगे भाई-बहनों में भी - साम्य होते हुए भी - अंतर होता है।
यही कारण है कि मनुष्य के डीएनए में केवल 0.1% का अंतर होने के बावजूद दुनिया के हर मनुष्य में परस्पर अंतर होता है। जो 99.9% साम्य होता है, वह उन सबको मनुष्य बनाता है। वह उनको जन्तु-जगत का सदस्य, वर्टीब्रेट्स, कॉर्डेट्स, मैमल्स, होमीनाइड्स और फिर होमो सैपियंस बनाता है। वह उनका पाचन, श्वसन, रक्त-संचार और अनेक अन्य तंत्रों को मोटे रूप में एक समान बनाता है। वह अंतर छोटे होते हैं और यह साम्य बहुत अधिक। संसार के मनुष्यों की त्वचा, बालों और आंखों के रंग में अंतर और उनकी ऊंचाई में अंतर के बाद भी वे सब मनुष्य ही होते हैं। हम सब मूल रूप से एक ही हैं।
यह विश्लेषण इस बात पर प्रकाश डालता है कि जीव-जातियों का विकास कैसे हुआ था, उनके विकास में जीन्स की क्या भूमिका है, कैसे उनके शरीर और मानसिक रचना में भिन्नताएं और समानताएं होती हैं। मानव में बोल सकने और भाषा के विकास में उसके जीन्स की क्या भूमिका है आदि। हमें मानव, या किसी भी अन्य जीव-जाति के सदस्यों, में साम्य और अंतरों के वास्तविक कारणों को समझना चाहिए। इस विश्लेषण और इन तथ्यों को सामने रखने का यही उद्देश्य और महत्व है। नीचे टिप्पणी में श्री छोटे लाल जी को दिए गए उत्तर में मेरी यह भावना परिलक्षित होती है।