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Showing posts from March, 2025

मानव शरीर

मानव शरीर मे दो प्रकार की कोशिकाए होती है - सोमेटिक सेल्स तथा जर्म सेल्स... इसमे सोमेटिक सेल्स वो कोशिकाए होती है, जिनसे आपका शरीर बनता है। वहीं जर्म सेल्स वो होती है, जिनसे कोई नर या मादा अपने बच्चे पैदा करता है। अब खास बात ये है कि ये दोनो सेल्स आपस मे मिक्स नही होती। जर्म सेल्स भ्रूण विकास के दौरान ही आपके शरीर की सोमेटिक सेल्स से अलग हो जाती है। अब आप जीवन भर दंड मारिये, पहलवान बनिये, शिक्षक बनिये या हवाई जहाज उड़ाइये - आपकी परिस्थिति, लालन-पालन, शिक्षा, पृष्ठभूमि इत्यादि से आपके शरीर मे जो भी बदलाव आएगे, वो सोमेटिक सेल्स के डीएनए मे आएंगे, जर्म सेल्स मे नही। अर्थात, आपकी क्षमताए जेनेटिक्स का नहीं, एपीजेनेटिक्स का विषय होती हैं। . इस बात को ऐसे भी कहा जा सकता है कि - यानी आप कैसी संतान पैदा करेगे, इसका फैसला आपके पैदा होने से पूर्व तभी हो चुका होता है, जब आप गर्भ मे होते है। आपने बड़े होने के बाद अपने जीवन मे क्या किया, क्या उखाड़ा, क्या योग्यता अर्जित की - उसका शतांश भी आपकी होने वाली औलाद मे ट्रांसफर नही होने वाला। . अब आप कहेगे कि जब कोई जीव अपनी किसी विशेषता को अगली पीढ़ी मे ट्रांस...

मनुष्य के विकास पर प्रकाश डालते कुछ तथ्य

मनुष्य चिम्पांजी के साथ इंटरफर्टाइल क्यो नही है ? : मनुष्य के विकास पर प्रकाश डालते कुछ तथ्य - विकास-क्रम मे चिम्पांजी मानव के सबसे पास के चचेरे भाई हैं और उनका डीएनए मानव से 98.8% मिलता है। यहां प्रश्न यह उठता है कि यदि चिम्पांजी और मानव का डीएनए आपस में इतना मिलता है तो उनमें शारीरिक और बौद्धिक रूप से अंतर क्यों है और ये आपस में इंटरफर्टाइल क्यों नहीं हैं! अर्थात् यदि हम इन दोनों जातियों में से किसी एक का नर गैमीट और दूसरे का मादा गैमीट लें और मादा गैमीट को नर गैमीट से फर्टिलाइज कराने का प्रयास करें तो वह फर्टिलाइज क्यों नहीं होगा अथवा यदि फर्टिलाइज हो भी गया तो आगे एक संकर शिशु में विकसित क्यों नहीं होगा! ठीक है, मनुष्य (Homo sapiens) और चिम्पांजी (Pan troglodytes) में केवल 1.2% जेनेटिक अंतर है, किन्तु प्रजातियों का प्रजनन सामंजस्य (रिप्रोडक्टिव कॉम्पैटिबिलिटी) देखने के लिए न केवल उनमें अंतर और साम्य का प्रतिशत महत्वपूर्ण होता है वरन् यह भी महत्वपूर्ण होता है कि वह अंतर कहां पर है और वह प्रजनन साम्य को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है। मानव में 23 जोड़ी क्रोमोसोम्स होते हैं जबकि चिम्पा...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 11: गुरुत्वाकर्षण का लैंस

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 11: गुरुत्वाकर्षण का लैंस जिस तरह कांच के लैंस किरणों को केन्दित या विकेन्दित कर सकते हैं, उसी तरह अत्यधिक द्रव्यमान वाले पिण्ड अथवा पिण्डों का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र प्रकाश के लैंस की तरह कार्य कर सकता है, आइन्स्टाइन ने अपने व्यापक सापेक्षवाद में ऐसी भविष्यवाणी की थी। जिसके फलस्वरूप कोई मन्दाकिनी अधिक प्रकाशवान दिख सकती है, तथा एक पिण्ड के अनेक बिम्ब दिख सकते हैं। ‘नेचर’ पत्रिका के 18/25 दिसम्बर, 2003 के अंक में एक प्रपत्र प्रकाशित हुआ है। इसमें स्लोन तन्त्र (एस डी एस एस) की टीम ने रिपोर्ट दी है कि चार निकट दिखते हुए क्वेसार वास्तव में गुरुत्वाकर्षण लैंस के द्वारा एक ही क्वेसार के चार बिम्ब हैं। सामान्यतया क्वेसारों के बीच पाई जाने वाली दूरी अब तक अधिकतम 7 आर्क सैकैण्ड पाई गई है। इन चारों के बीच अधिकतम दूरी 14 आर्क सैकैण्ड है। इतनी अधिक दूरी के लिये जितना द्रव्य–घनत्व चाहिये वह दृश्य पदार्थ से नहीं बनता। अतएव वहां पर अदृश्य पदार्थ होना चाहिये जिससे इतना शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण लैंस बना है।और उसे ‘शीतल अदृश्य पदार्थ‘ होना चाहिये जिसका घनत्व ‘उष्ण’ अदृश्य पदार्थ...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 10: अदृश्य पदार्थ और अदृश्य ऊर्जा

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 10: अदृश्य पदार्थ और अदृश्य ऊर्जा अदृश्य पदार्थ क्या केवल कल्पना है या इसके कुछ ठोस प्रमाण भी हैं? जब कोई पिण्ड गोलाकार घूमता है तब उस पर अपकेन्द्री बल कार्य करने लगता है। इसी बल के कारण तेज मोटरकारें तीखे मोड़ों पर पलट जाती हैं, मोटरसाइकिल वाला सरकस के मौत के गोले में बिना गिरे ऊपर–नीचे मोटरसाइकिल चलाता है। इसी अपकेन्द्री बल के कारण परिक्रमारत पृथ्वी को सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अपनी ओर अधिक निकट नहीं कर पाती है, और वह अपनी नियत कक्षा में परिक्रमा करती रहती है। जो अपकेन्द्री बल पृथ्वी के परिक्रमा–वेग से उत्पन्न होता है वह गुरुत्वाकर्षण बल का सन्तुलन कर लेता है। इसी तरह की परिक्रमा हमारा सूर्य (200 कि. मी./सै.) अन्य तारों के साथ अपनी मन्दाकिनी–आकाश गंगा– के केन्द्र के चारों ओर लगाता है। चूंकि यह सारे पिण्ड अपनी नियत कक्षाओं में परिक्रमा रत हैं अथार्त उन पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षण बल तथा उनके अपकेन्द्री बल में सन्तुलन है। एक और विस्मयजनक घटना है। एक तारा और कुछ ग्रह मिलकर सौरमण्डल (सोलार सिस्टम) के समान तारामण्डल बनाते हैं; कुछ (करोड़ों) तारे मिलकर मन्दाकिनी बनात...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 9: त्वरक ब्रह्माण्ड (एक्सिलरेटिंग यूनिवर्स)

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 9: त्वरक ब्रह्माण्ड (एक्सिलरेटिंग यूनिवर्स) ‘प्रसारी ब्रह्माण्ड’ की एक घटना सर्वाधिक विस्मयकारी है और उसने दुविधाएं भी बहुत उत्पन्न की हैं, वह है ब्रह्माण्ड के प्रसार के वेग का दूरी के साथ बढ़ना। अथार्त न केवल ब्रह्माण्ड में मन्दाकिनियों का प्रसार हो रहा है, वरन उस प्रसार का वेग न तो स्थिर है और न कम हो रहा है, वरन बढ़ रहा है। सामान्य समझ तो यह कहती है कि विस्फोट के समय प्रसार–वेग त्रीवतम होना चाहिये था, और समय के साथ उसे यदि कम न भी होना हो तो बढ़ना तो नहीं ही चाहिये वैसे ही जैसे पृथ्वी पर वेग से (मुक्ति वेग से कम) ऊपर फेकी गई वस्तु का वेग धीरे धीरे कम होता जाता है। और भी, जब हम सुपरनोवा का अभिरक्त विस्थापन देखते हैं तो हमें यह ज्ञात होता है कि सुपरनोवा के विस्फोट पश्चात ब्रह्माण्ड का विस्तार कितने गुना हो गया है। यदि ब्रह्माण्ड के विस्तार में त्वरण है तब भूतकाल में आज की तुलना में विस्तार का वेग कम था। अथार्त पिण्डों के बीच की दूरियां बढ़ रही हैं। अब जो दूरी हमें हमारे और किसी एक सुपरनोवा के बीच दिख रही है वह उस सुपरनोवा के विस्फोट (महान विस्फोट नहीं) काल की हमा...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 8: मन्दाकिनियों का विकास

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 8: मन्दाकिनियों का विकास सृष्टि की रचना में कणों के निर्माण पश्चात पहले तो हाइड्रोजन तथा हीलियम के विशाल बादल बनें। शनै: शनै: जब ये विशाल बादल इतने बड़े हो गये कि वे अपने ही गुरुत्वाकर्षण से दबकर संकुचित हो गये तब तारे तथा मन्दाकिनियां बनी। पहली मन्दाकिनियों तथा तारों को बनने में लगभग 100 करोड़ वर्ष लगे उस समय ब्रह्माण्ड का विस्तार आज के विस्तार का पंचमांश ही था। उपग्रह स्थित हबल टेलिस्कोप से लगभग 170 करोड़ वर्ष आयु की (अथार्त आज से 1200 करोड़ वर्ष पूर्व की स्थिति में) अण्डाकार मन्दाकिनी देखने में जो आनन्द आता है वह सन 1609 में गालिलेओ द्वारा दूरदर्शी से देखे गए बृहस्पति के चार चान्दों को देखने वाले आनन्द का ही संवधिर्त रूप है। इसके बाद कुण्डलाकार मन्दाकिनियां आदि बनी। ब्रह्माण्ड की 1370 करोड़ वर्ष की आयु का आकलन सबसे ताजा है और अधिक परिशुद्ध माना जाता है, पहले इसकी याथार्थिकता पर सन्देह बना रहता था, क्योंकि यह हबल–नियतांक के मान पर निर्भर करता है। जिसका निधार्रण सन्देहास्पद ही रहता था। अभिरक्त विस्थापन में मन्दाकिनियों के भागते–वेग के अतिरिक्त अन्य वेग भी रहते हैं...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 7: प्रकाश का अन्धमहासागर

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 7: प्रकाश का अन्धमहासागर लगभग तीन लाख वर्षों तक ब्रह्माण्ड में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा अन्य नाभिक, फोटॉन, इलैक्ट्रॉन तथा न्युट्रनो के अपारदर्शी महासागर में एक दूसरे से टकराते रहे किन्तु दिख नहीं रहे थे! यह सब इतना घना था कि फोटान अन्य कणों से लगातार टकराते रहे और इसलिये वे बाहर नहीं निकल सकते थे और इसलिये ब्रह्माण्ड दिख नहीं सकता था। इसलिये इसे ‘प्रकाश का अन्धमहासागर’ भी कह सकते हैं। इस काल के अन्त तक ब्रह्माण्ड का तापक्रम लगभग 3000 ‘कै’ हो गया था। अतएव फोटॉनों की ऊर्जा अब कम हो गई थी और वे उस महासागर से बाहर निकल सकते थे। फोटॉनों को पूरी मुक्ति मिलने में लगभग दस लाख वर्ष लगे। इस युग को ‘पुनर्संयोजन युग’ (रीकॉम्बिनेशन एरा) कहते हैं। पुनर्संयोजन युग में निर्मित फोटॉनों का विशाल सागर अभी तक मौजूद है और यही हमें ‘पृष्ठभूमि सूक्ष्म तरंग विकिरण’ के रूप में सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त दिखाई देता है। इसका नाप सर्वप्रथम 1965 में लिया गया था, जो बाद में कई बार संपुष्ट किया गया। इस विकिरण की शक्ति लगभग 1370 करोड़ वर्षों में बहुत क्षीण हो गई है और इसका तापक्रम मात्र 2.73 ख...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 6: नाभिकीय संश्लेषण युग

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 6: नाभिकीय संश्लेषण युग प्रसार का अगला चरण 1 सैकैण्ड से 100 सैकैण्ड तक चला, इसे ‘नाभिकीय–संश्लेषण युग’ (न्यूक्लीय सिन्थैसिस एरा) कहते हैं। प्रोटॉन तो इस नाभिकीय संश्लेषण युग के पूर्व ही बन चुके थे जो हाइड्रोजन के नाभिक बने। इन निन्न्यानवे सैकैण्डों के नाभिकीय संश्लेषण युग में आज तक मौजूद लगभग सारा हाइड्रोजन, हीलियम, भारी हाइड्रोजन आदि तथा अल्प मात्रा में लिथियम के नाभिक बने। पुराने प्रसारी सिद्धान्त के अनुसार इस काल में जैसा भी प्रसार हुआ उससे आज का समांगी ब्रह्माण्ड नहीं निकलता। तथा उसके अनुसार यदि आज ब्रह्माण्ड समतल है तो प्रारम्भ के उस क्षण में भी उसे समतल होना आवश्यक था जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता। इसी तरह आज जो विकिरण का प्रसार है वह भी समांगी है। इसे भी नहीं समझाया जा सकता। इसे ‘क्षितिज समस्या’ भी कहते हैं। पुराने प्रसारी सिद्धान्त के अनुसार उस अत्यधिक उष्ण तथा घनी स्थिति में कुछ विचित्र कणों तथा पिण्डों का निर्माण होना चाहिये था। और उनमें से कुछ यथा ‘एक ध्रुवीय चुम्बक’, ‘ग्रैविटिनोज़’, एक्सिआयन्स आदि आदि के अवशेष तो मिलना चाहिये जो नहीं मिलते। पुराना...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 5: ब्रह्माण्ड का विकास

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य 5: ब्रह्माण्ड का विकास प्रसारी सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड का विकास कैसे होता है। इस सिद्धान्त के निर्माण के लिये कुछ मूलभूत मान्यताओं से प्रारम्भ करते हैं; कि एड्विन हबल के अभिरक्त विस्थापन के अवलोकनों के आधार पर ब्रह्माण्ड का प्रसार हो रहा है, तथा दूरी के अनुपात में तीव्रतर होता जाता है। प्रसारी सिद्धान्त के यह दो –अवरक्त विस्थापन तथा प्रसार – वे आधार स्तम्भ हैं जिन पर प्रसारी सिद्धान्त खड़ा है। यह दो स्तम्भ स्वयं अन्य दो मान्यताओं के स्तंभ पर खड़े हैं कि ब्रह्माण्ड विशाल अर्थ में समांगी (होमोजीनियस) तथा समदैशिक (आइसोट्रोपिक) है। तथा यह स्थिति न केवल आज है वरन विस्फोट की अवधि में भी थी। इस में तथा स्थायीदशा सिद्धान्त की मान्यताओं में जो मुख्य अन्तर है वह यह कि ‘काल’ में प्रसारी सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड परिवर्तनीय है जबकि ‘स्थायीदशा’ में ‘काल’ में भी अपरिवर्तनीय है। इन सिद्धान्तों पर 1922 रूसी गणितज्ञ अलेक्सान्द्र फ्रीडमान ने कुछ गणितीय सूत्रों का निर्माण किया था जिनके द्वारा प्रसारी ब्रह्माण्ड की व्याख्या की जा सकती है। 1927 में बेल्जियन वैज्ञानिक लमे...

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य - ४: स्थायी दशा सिद्धान्त

ब्रह्माण्ड के खुलते रहस्य - ४: स्थायी दशा सिद्धान्त तीसरे दशक के बाद अनेक वैज्ञानिक, जिनके मन को यह प्रसारी ब्रह्माण्ड नहीं भा रहा था, यह प्रश्न कर रहे थे कि यदि ब्रह्माण्ड का प्रारंभ हुआ था, तब उस क्षण के पहले क्या स्थिति थी अत्यन्त विशाल ब्रह्माण्ड एक अत्यन्त सूक्ष्म बिन्दु में कैसे संकेन्दि`त हो सकता है? उस बिन्दु में समाहित पदार्थ का विस्फोट क्यों हुआ? उतना अकल्पनीय पदार्थ कहां से आ गया? और प्रसार या विस्तार के बाद ब्रह्माण्ड का अन्त क्या होगा? इनमें से अधिकांश प्रश्न तो मुख्यतया विज्ञान के प्रश्न नहीं वरन दर्शन विषय के प्रश्न हैं, अथार्त यह दशार्ता है कि वैज्ञानिक भी कभी कभी प्रत्यक्ष की तुलना में दार्शनिक अवधारणाओं को अधिक महत्व देते हैं। अस्तु! तीन वैज्ञानिकों गोल्ड, बान्डी तथा हॉयल ने 1948 में एक संवधिर्त सिद्धान्त प्रस्तुत किया – ‘स्थायी दशा सिद्धान्त’। अथार्त यह ब्रह्माण्ड प्रत्येक काल में तथा हर दिशा में एक सा ही रहता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता। इस तरह उपरोक्त प्रश्नों को निरस्त्र कर दिया गया। क्योंकि इस सिद्धान्त के तहत ब्रह्माण्ड अनादि तथा अनन्त माना गया है। इसलिये इसमें...