विज्ञान अथवा साइंस (science) सृष्टि के बारे में परीक्षण
योग्य परिकल्पनाओं और पूर्वानुमानो को उत्पादित करने वाले ज्ञान को कर्मबद्ध रखने वाला विषय है।[1][2] आधुनिक विज्ञान को सामान्यतः दो या तीन बड़ी शाखाओं में विभाजित किया जाता है:[3] भौतिक दुनिया के अध्ययन करने वाला प्राकृतिक विज्ञान (उदाहरण के लिए भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र एवं जीव विज्ञान) और व्यष्टिगत व सामाजिक अध्ययन करने वाली व्यवहारपरक विज्ञान (उदाहरण के लिए अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र)।[4][5] कुछ अभिगृहीतों और नियमावली से नियंत्रित औपचारिक तंत्रों का अध्ययन आकारिक विज्ञान (उदाहरण के लिए तर्कशास्त्र, गणित एवं सैद्धान्तिक कंप्यूटर विज्ञान)[6][7] को भी कई बार विज्ञान में गिना जाता है; हालांकि इन्हें अक्सर अलग क्षेत्र के रूप में वर्णित किया जात है क्योंकि इनमें विज्ञान की मुख्य विधियों आनुभविक साक्ष्य व वैज्ञानिक विधियों के स्थान पर निगमनात्मक तर्क का उपयोग किया जाता है।[8][9] अभियान्त्रिकी और आयुर्विज्ञान जैसे अनुप्रयुक्त विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक ज्ञान को प्रायोगिक उद्देश्यों के लिए काम में लिया जाता है।[10][11][12]
विज्ञान के इतिहास ऐतिहासिक रूप से बहुत लम्बा है। इसकी शुरूआत बहुत पुराने पहचान योग्य (अभिज्ञेय) लिखित अभिलेखों से लेकर कांस्य युग कालनिर्धारण तक एवं 3000 से 1200 ईसा पूर्व के लगभग के प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया शामिल हैं। उनके गणित, खगोल शास्त्र और आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में योगदानों ने श्रेण्य पुरावशेष के यूनानी प्राकृतिक दर्शनशास्त्र आकार देने का काम किया। इसी क्रम में प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या उपलब्ध करने के रूपात्मक (औपचारिक) प्रयास आरम्भ हुये। इसके आगे विज्ञान का उन्नत विकास भारत के स्वर्णयुग के दौरान भारतीय अंक प्रणाली के रूप में हुआ।[13][14][15][16] मध्य युग के पूर्वार्द्ध (400 से 1000 ई॰) के दौरान पश्चिम रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात यहाँ वैज्ञानिक शोध की अवनति आरम्भ हो गयी। लेकिन मध्यकालीन पुनर्जागरण (कैरोलिंगियन पुनर्जागरण, ओट्टोनियन पुनर्जागरण और १२वीं सदी का पुनर्जागरण) के दौरान इसमें पुनः विकास आरम्भ हो गया। कुछ यूनानी पांडुलिपियाँ पश्चिमी यूरोप में खो गई जिन्हें इस्लामी स्वर्ण युग के दौरान मध्य युग में सरंक्षण और विस्तार मिला।[17] बीजान्टिन यूनानी विद्वानों के प्रयासों से यूनानी पांडुलिपियों को पतन की ओर अग्रसर बीजान्टिन साम्राज्य से पश्चिमी यूरोप में लेकर जाने में सफलता प्राप्त की।
पश्चिमी यूरोप में 10वीं से 13वीं सदी तक यूनानी कार्य और इस्लामी अन्वेषणों की पुनर्प्राप्ति व आत्मसात करके "प्राकृतिक दर्शनशास्त्र" को पुनर्जीवित किया।[18][19][20] इससे 16वीं सदी के आरम्भ में वैज्ञानिक क्रांति आ गई[21] और पूराने यूनानी अवधारणाओं और परम्पराओं से नये विचार और आविष्कार सामने आये।[22][23] ज्ञान को और विकसित करने के लिए जल्दी ही वैज्ञानिक विधियों का विकास हुआ तथा 19वीं सदी के अंत से पहले ही विभिन्न विज्ञान के संस्थागत व व्यावसायिक रूप में सामने आने लग गया।[24][25] इसके साथ ही "प्राकृतिक दर्शनशास्त्र" ने "प्राकृतिक विज्ञान" का रूप लेना आरम्भ कर दिया।[26]
विज्ञान के क्षेत्र में नये ज्ञान का विकास वैज्ञानिकों के उन्नत शोध से आगे बढ़ा। वैज्ञानिकों के समस्याओं को हल करने इच्छा और उनकी जिज्ञासा से प्रेरित होना इसमें बहुत सहायक रहा।[27][28] समकालीन वैज्ञानिक अनुसंधान व्यापक रूप से सहयोगात्मक है और सरकारी अभिकरणों,[29] कंपनियों,[30] अकादमिक एवं अनुसंधान संस्थानों के समूहों द्वारा इसे आगे बढ़ाया जाता है।[31] इसका प्रायोगिक प्रभाव यह हुआ कि उनके काम के लिए वैज्ञानिक नीतियों का उद्भव हुआ। इससे वाणिज्यिक उत्पादों, हथियार, स्वास्थ्य देखभाल, सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा और पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न आचारिक और नैतिक विकास की प्राथमिकता को आवश्यक हुई।
शब्द व्युत्पत्ति
[संपादित करें]विज्ञान शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत से हुई है। "ज्ञान" में "वि" उपसर्ग लगाकर इस शब्द का निर्माण हुआ जिसका अर्थ विशेष ज्ञान है। उदाहरण के रूप में किसी पेड़ को देखकर उसका, उसका आकार और उसके सामान्य उपयोग बताना सामान्य ज्ञान की श्रेणी में आता है लेकिन उसी पेड़ की प्रजाति, उसके लिए आवश्यक जलवायु और मौसम का ज्ञान और उसके विकास का विशेष ज्ञान विज्ञान कहलाता है।[32]
विज्ञान के लिए प्रचलित अन्य शब्द "साइंस" अंग्रेज़ी भाषा का है। साइंस शब्द का उपयोग 14वीं सदी तक मध्य अंग्रेज़ी में "ज्ञान की अवस्था" के अर्थ में होता था। यह शब्द एंग्लो-नॉर्मन भाषा के प्रत्यय -सिंस (-cience) से अंग्रेज़ी में आया। सिंस शब्द का मूल लैटिन शब्द सैंसिया (scientia) से बना है जिसका अर्थ "ज्ञान, जागरूकता, समझ" है। सैंसिया शब्द अन्य लैटिन शब्द सैइंस (sciens) का संज्ञात्मक व्युत्पन्न है जिसक अर्थ ज्ञात होने से है। सैइंस शब्द की व्युत्पति सियो (sciō) से हुई जो सिरे (scīre) का वर्तमान कालिक विशेषण है और इसका अर्थ "जानने की इच्छा" होती है।[33]
साइंस शब्द के मूल के बारे में विभिन्न परिकल्पनायें हैं। हिन्द-यूरोपीय और डच भाषाविद् माइकल डी वान के अनुसार सियो की उत्पत्ति प्रोटो-इटाली भाषा के शब्द *स्किजे- (*skije-) या *स्किजो- (*skijo-) से हुई जिसका अर्थ "जानने से" है। इन शब्दों की व्युत्पत्ति प्रोटो-हिन्द-यूरोपीय भाषा के शब्दों *skh1-ie, *skh1-io से हुई जिनका अर्थ "उत्कीर्ण" से है। लेक्सिकॉन डेर इंडो-जर्मेनिशन वर्बेन (Lexikon der indogermanischen Verben) शब्दकोश सियो (sciō) को निसिरे (nescīre) का वापस गठन माना जिसका अर्थ "नहीं जानने, या अनभिज्ञ होने" से है। "निसिरे" शब्द की व्यत्पत्ति प्रोटो-हिन्द-यूरोपीय *सेख (*sekH-) से हुई जिसके तुल्य लैटिन शब्द सेचारे (secāre) अथवा *skh2-, है जो *sḱʰeh2(i)- से बना है और इसका अर्थ "काटने" से है।[34]
पहले साइंस को "ज्ञान" अथवा "अध्ययन" का प्रयायवाची शब्द माना जाता था जिसे लैटिन मूल के रूप में रखा जाता था। वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाले व्यक्ति को "प्राकृतिक दार्शनिक" (natural philosopher) अथवा "वैज्ञानिक" (man of science) कहा जाता है।[35] सन् 1834 में विलियम ह्वेवेल ने मैरी सोमरविल की पुस्तक ऑन द कनेक्सन ऑफ़ द फिजिकल साइंसेज (On the Connexion of the Physical Sciences) की समीक्षा के दौरान "साइंटिस्ट" शब्द की रचना की,[36] जिसने अनुसार ये लोग "कुछ प्रतिभाशाली सज्जन" (सम्भवतः स्वयं के लिए) हैं।[37]
इतिहास
[संपादित करें]शुरूआती इतिहास
[संपादित करें]विज्ञान की शुरुआत किसी एक विशेष समय से नहीं हुई बल्कि विशिव के भिन्न-भिन्न भागों में हज़ारों वर्षों में धीरे-धीरे विभिन्न क्रमबद्ध विधियों का विकास होता रहा।[38][39] प्रागैतिहासिक विज्ञान में सम्भवतः महिलाओं ने केन्द्रीय भूमिका निभाई[40] क्योंकि अधिकतर धार्मिक अनुष्ठानों में उनका योगदान अधिक होता था।[41] प्राचीन (प्रागैतिहासिक) वैज्ञानिक गतिविधियों को कुछ विद्वान "प्रोटॉसाइंस" (protoscience) या आद्यविज्ञान कहते हैं जिनके कुछ गुणधर्म आधुनिक विज्ञान के सदृश्य हैं लेकिन सभी गुणधर्म समरूप नहीं हैं।[42][43][44] हालांकि ऐसे शब्दों को निंदनीय,[45] अथवा अति वर्तमानवाद सूचक, अथवा केवल वर्तमान श्रेणियों के सम्बंध में उन गतिविधियों के बारे में सोचने के रूप में भी देखा जाता है।[46]
प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया जैसी प्रारंभिक सभ्यताओं में लेखन प्रणालियों (लिपि) के प्रादुर्भाव के साथ वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के प्रत्यक्ष साक्ष्य स्पष्ट रूप से मिलते हैं। इस तरह विज्ञान के इतिहास में सबसे प्रारंभिक लिखित अभिलेख लगभग 3000 से 1200 ईसा पूर्व के बीच निर्मित हुए।[13][14] यद्यपि "विज्ञान", "साइंस", "प्रकृति" और "नैचर" जैसे शब्द और अवधारणायें उस समय के वैचारिक परिदृश्य में नहीं थे। प्राचीन मिश्र और मेसोपोटामिया के योगदान बाद में यूनानी और मध्यकालीन विज्ञान में गणित, खगोलशास्त्र और आर्युविज्ञान में स्थान प्राप्त करने में सफल रहे।[47][13] तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से प्राचीन मिस्रवासियों ने दशमलव संख्या प्रद्धति विकसित की,[48] ज्यामिति (रेखागणित) का उपयोग करके व्यावहारिक समस्याओं को हल किया[49] और एक पंचांग (कालदर्शक) विकसित किया।[50] उनके स्वास्थ्यवर्धक उपचारों में दवा उपचार और अलौकिक उपचार जैसे प्रार्थना, मंत्रोचार एवं अनुष्ठान आदि शामिल थे।[13]
प्राचीन मेसोपोटामिया के लोग विभिन्न प्राकृतिक रसायनों के गुणों के बारे में ज्ञान का उपयोग करते थे। इससे वो मिट्टी के बर्तन, प्रकाचित वस्तु (चीनीमिट्टी), कांच, साबुन, धातु, चूना प्लास्टर और जलरोधी बर्तनों का निर्माण और उपयोग करते थे।[51] उन्होंने भविष्यवाणी के उद्देश्य से ज्योतिष, पशु कार्यिकी, शारीरिकी और जैव पारिस्थितिकी का अध्ययन किया।[52] मेसोपोटामियावासियों की चिकित्सा में गहरी रुचि थी और सबसे प्रारंभिक औषधि पत्र उर के तीसरे राजवंश के दौरान सुमेरी भाषा में मिलते हैं।[51][53] ऐसा लगता है कि उन्होंने ऐसे वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन किया था जिनका व्यावहारिक या धार्मिक अनुप्रयोग था तथा जिज्ञासा को संतुष्ट करने में बहुत कम रुचि थी।[51]