ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं
मौसम का अर्थ है किसी स्थान विशेष पर, किसी खास समय, वायुमंडल की स्थिति। यहाँ “स्थिति” की परिभाषा कुछ व्यापक परिप्रेक्ष्य में की जाती है। उसमें अनेक कारकों यथा हवा का ताप, दाब, उसके बहने की गति और दिशा तथा बादल, कोहरा, वर्षा, हिमपात आदि की उपस्थिति और उनकी परस्पर अंतः क्रियाएं शामिल होती हैं। ये अंतक्रियाएं ही मुख्यतः किसी स्थान के मौसम का निर्धारण करती हैं। यदि किसी स्थान पर होने वाली इन अंतःक्रियाओं के लंबे समय तक उदाहरणार्थ एक पूरे वर्ष तक, अवलोकन करके जो निष्कर्ष निकाला जाता हैं तब वह उस स्थान की “जलवायु” कहलाती है। मौसम हर दिन बल्कि दिन में कई बार बदल सकता है। पर जलवायु आसानी से नहीं बदलती। किसी स्थान की जलवायु बदलने में कई हजार ही नहीं वरन् लाखों वर्ष भी लग सकते हैं। इसीलिए हम ‘बदलते मौसम’ की बात करते हैं, ‘बदलती हुई जलवायु’ की नहीं। हम मौसम के बारे में ही समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं, रेडियों पर सुनते हैं और टेलीविजन पर देखते हैं।
पृथ्वी के अधिकतर स्थानों पर साल चार ऋतुओं में बंटा होता है। ये हैं वसन्त , ग्रीष्म , शरद और शीत(शिशिर)
मिथक : पृथ्वी की कक्षा
बहुत से लोग मानते है कि ग्रीष्म ऋतु मे पृथ्वी सूर्य के समीप होती है जिससे मौसम उष्ण हो जाता है। इसके विपरीत शीत ऋतु मे पृथ्वी सूर्य से दूर होती है जिससे मौसम शीतल हो जाता है। सतही तौर पर यह सच भी लगता है लेकिन यह गलत है।
यह सच है कि पृथ्वी की कक्षा पूर्ण वृत्त ना होकर दिर्घवृत्ताकार है। वर्ष के कुछ समय पृथ्वी सूर्य के समीप होती है और कुछ समय सूर्य से दूर। लेकिन जब उत्तरी गोलार्ध मे शीत ऋतु होती है पृथ्वी सूर्य के निकट होती है और सूर्य से दूर वाली स्तिथि मे उत्तरी गोलार्ध मे ग्रीष्म ऋतु होती है।
पृथ्वी की सूर्य से निकटतम स्तिथि(3 जनवरी के आसपास) मे दूरी 14.71 करोड़ किमी होती है जबकी दूरस्थ स्तिथि (4 जुलाई के आसपास) मे दूरी 15.21 करोड़ किमी होती है। दोनो स्तिथि मे दूरी मे अंतर लगभग 60 लाख किमी का आता है जो इस पैमाने पर नगण्य है और इतना नही है कि वह पृथ्वी पर मौसम पर कोई प्रभाव डाल सके।
बदलती ऋतुएं
ऋतुओं के हिसाब से मौसम बदलता रहता है। शीत(शिशिर) में वह सबसे ठण्डा होता है और ग्रीष्म में सबसे गर्म। बहुत-से पेड़-पौधे भी ऋतुओं के अनुसार बदलते रहते हैं। कुछ पेड़ों को देख कर ही तुम बता सकते हो कि इस समय कौन-सी ऋतु है।
- वसन्त में, जैसे-जैसे मौसम गर्म होना शुरू होता है, पेड़ों पर नयी पत्तियां उगने लगती हैं।
- गर्मियों में, इस तरह के पेड़ हरी पत्तियों से ढके होते हैं।
- शरद ऋतु में, पेड़ों की पत्तियां लाल या भूरी पड़ कर मरने लगती है।
- शीत(शिशिर) या सर्दियों तक सारी पत्तियां पीली पड़ कर झर जाती हैं।
पारंपरिक पश्चिमी मौसम विज्ञान से थोड़ा हट कर भारत में मौसम को छह: ऋतुओं में बांटा गया है। यह हैं: ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शीत(शिशिर), वसंत। अगर यह कुछ ज्यादा लग रहे हैं तो जरा चीन की तरफ देखो वहां तो महीनों से दोगुने मतलब 24 मौसम माने जाते हैं!
ऋतुओं का कारण क्या है?
मौसम का निर्माण करने वाले या उसे प्रभावित करने वाले कारक के रूप में पृथ्वी की स्थिति पूर्णतः सूर्य पर निर्भर नहीं है। इस बारे में स्वयं उसका भी महत्त्वपूर्ण योग है। सौर परिवार के एक सदस्य के रूप में उसमें भी स्वयं के ऐसे गुण मौजूद हैं जो उस पर मौसम का निर्माण करते हैं। सूर्य के चारों ओर 96.6 करोड़ किमी. की दीर्घवृत्तीय कक्षा में परिक्रमा करने के अतिरिक्त वह स्वयं भी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर, लगभग 1690 किमी. प्रतिघंटे की दर से घूमती है। पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना ही बहती हुई पवन और जलधाराओं की दिशाओं का निर्धारण करता है। ये दोनों कारक भी मौसम को प्रभावित करते हैं।
मौसम को प्रभावित करने वाला पृथ्वी का एक अन्य गुण है उसकी विशेष आकृति। वह एक ऐसी गेंद के समान है जो ध्रुवों पर थोड़ी चपटी है। इस प्रकार पृथ्वी की आकृति नासपाती के सदृश्य हो गयी है और यह भी उसके विभिन्न क्षेत्रों के तापों में अंतर के लिए उत्तरदायी है।
पृथ्वी की विशिष्ट आकृति के कारण सौर किरणें उसके हर क्षेत्र पर एक समान तीव्रता से नहीं पड़ती। उसके मध्य भाग में, भूमध्यरेखा के आस-पास के क्षेत्र में, उनकी तीव्रता सबसे अधिक होती है। जैसे-जैसे मध्य भाग से ऊपर (उत्तर) और नीचे (दक्षिण) की ओर बढ़ते हैं उनकी तीव्रता कम होती जाती है। ध्रुवों तक पहुंचते-पहुंचते वह अत्यंत क्षीण हो जाती है। साथ ही उत्तर और दक्षिण की ओर जाते समय सौर किरणों द्वारा तय की जाने वाली दूरियां भी बढ़ती जाती हैं। इन कारणों से भूमध्य रेखा के आस-पास वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। उत्तर अथवा दक्षिण की ओर जाते समय वह कम होती जाती है और ध्रुवों तक पहुंचते-पहुंचते लगभग नगण्य हो जाती है। इसलिए ध्रुवीय प्रदेश सदैव बर्फ से आच्छादित रहते हैं।
पृथ्वी की एक और विशेषता है उसकी धुरी का झुकाव। उसकी धुरी उसके परिक्रमा पथ के तल से 23½0 के कोण पर झुकी हुई है। यह झुकाव पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को भी प्रभावित करता है। इस झुकाव की वजह से ही पृथ्वी का एक गोलार्द्ध छह माह तक सूर्य की ओर झुका रहता है और अगले छह मास तक दूसरा गोलार्द्ध। यह क्रम निरंतर चलता रहता है। इसके फलस्वरूप ही ऋतुएं-वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत(शिशिर)- उत्पन्न होती हैं।
पृथ्वी की धुरी के झुकाव के कारण ही उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों में वर्ष के एक ही समय अलग-अलग ऋतुएं होती हैं। जब उत्तरी गोलार्द्ध में भीषण गर्मी पड़ रही होती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में लोग ठंड से ठिठुर रहे होते हैं और जब उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु आ जाती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी पड़ती है।
21 मार्च (बसंत विषुव) को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत चमकता है और सम्पूर्ण विश्व में रात-दिन बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होती है। इसके पश्चात् सूर्य उत्तरायण हो जाता है और 21 जून (ग्रीष्म संक्रांति) को कर्क रेखा पर लम्बवत होता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में अधिकतम सूर्यातप मिलता है और ग्रीष्म ऋतु होती है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में अल्पतम सूर्यातप प्राप्त होने के कारण शीत ऋतु होती है। इसके पश्चात् सूर्य की स्थिति पुनः दक्षिण की ओर होने लगती है और 23 सितम्बर (शरद विषुव) को पुनः सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् होता है और सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में पतझड़ ऋतु होती है। सितम्बर से सूर्य दक्षिणायन होने लगता है और 22 दिसम्बर (शीत संक्रांति) को मकर रेखा पर लम्बवत् होता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में अल्पतम सूर्यातप प्राप्त होता है और यहाँ शीत ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिकतम सूर्यातप की प्राप्ति के कारण ग्रीष्म ऋतु होती है। इस प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध में विपरीत ऋतुएं पायी जाती हैं।
- दिसंबर : विषुवत के नीचे ग्रीष्म, विषुवत के उपर शीत। सूर्य किरणे दक्षिणी गोलार्ध के उपर सीधे पड़ती है जबकी वे उत्तरी गोलार्ध पर तीरछे पड़ती है।
- मार्च : विषुवत के नीचे पतझड़, विषुवत के उपर वसंत। सूर्य किरणे दक्षिणी गोलार्ध तथा उत्तरी गोलार्ध एक जैसे ही पड़्ती है।
- जुन : विषुवत के नीचे शीत, विषुवत के उपर ग्रीष्म। सूर्य किरणे दक्षिणी गोलार्ध के उपर तीरछे पड़ती है जबकी वे उत्तरी गोलार्ध पर सीधे पड़ती है।
- सितंबर : विषुवत के नीचे वसंत, विषुवत के उपर पतझड़। सूर्य किरणे दक्षिणी गोलार्ध तथा उत्तरी गोलार्ध एक जैसे ही पड़्ती है।