तथ्य-विवेचना
भाग 4...
क्लासिकल और आधुनिक फिजिक्स के संदर्भ मे रोजमर्रा के अनुभवो और वास्तविकता मे अन्तर
इस श्रृंखला मे हो रही चर्चा मे हमने देखा कि किस प्रकार क्वान्टम फिजिक्स बहुत सारी आश्चर्यजनक बातो को बताती है। हम इन आश्चर्यजनक बातो को अपने रोजमर्रा के जीवन मे अनुभव नही करते है, और इसीलिए हमे ये आश्चर्यजनक लगती भी है। आइए, हम कुछ उदाहरणो से इन बातो को देखे और यह समझे कि इन बातो का हमारे ब्रह्माण्ड की व्यवस्था और अव्यवस्था को समझने मे क्या महत्व है...!
हमने देखा था कि कोई गतिशील कण - मान लीजिए इलेक्ट्रॉन या फोटॉन - एक साथ कण और तरंग के गुण रखता है। इसके अतिरिक्त इसके संवेग और स्थिति मे सदैव एक अनिश्चितता भी होती है। क्या ये बाते बड़े स्तर - मान लीजिए एक फुटबॉल के स्तर - पर भी होती है ?
यदि हम एक फुटबॉल को एक विशेष बल से विशेष दिशा मे ठोकर मारे तो वह ठोकर के इस बल, इस बल के कोण, हवा के प्रतिरोध के बल, हवा के चलने की दिशा के कारण उत्पन्न बल, हवा की नमी और अन्य अनेक कारणो से निर्धारित वेग और दिशा के अनुसार जाएगी। क्या इसके संवेग और स्थिति मे भी क्वांटम फिजिक्स के नियमो के अनुसार अनिश्चितता होगी अथवा ये चीजे पूरी तरह निश्चित होगी ?
हम क्लासिकल फिजिक्स मे न्यूटन के गति के नियम और अन्य नियमो को पढ़ते है जो इन सब गतियो के बारे मे बताते है। वह इन सब के बारे मे निश्चितता से बताते है। लेकिन यदि हम वास्तव मे देखे तो ये चीजे पूरी तरह निश्चित नही होती हैं - इनमे क्वान्टम भौतिकी के नियमो के अनुसार अनिश्चितता होती है। लेकिन क्वान्टम भौतिकी के नियमो के अनुसार फुटबॉल का द्रव्यमान किसी छोटे मूलभूत कण, जैसे - इलेक्ट्रॉन - की तुलना मे बहुत अधिक होने के कारण यह अनिश्चितता बहुत कम होती है। हां, हम इसकी गणना कर सकते है। इसी प्रकार एक गतिशील फुटबॉल मे भी तरंग के गुण होगे। लेकिन फुटबॉल का द्रव्यमान बहुत अधिक होने के कारण ये गुण - Wave Function - बहुत कम होगे। उस फुटबॉल की तरंग दैर्ध्य (Wavelength) और आवृत्ति (Frequency) बहुत कम होगी। यह इतनी कम होगी कि हम अपने रोजमर्रा के क्रिया-कलापो मे इसे अनुभव नही कर पाएगे। इसलिए एक फुटबॉल की गति को समझने के लिए व्यावहारिक रूप से क्लासिकल फिजिक्स उपयुक्त है।
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम यह है कि दो पिंडो का अस्तित्व होने पर उनके बीच मे तुरंत एक गुरुत्वाकर्षण बल लगेगा और उनमे से एक पिंड को हटाते ही उनके बीच का बल तुरंत समाप्त हो जाएगा। लेकिन वास्तव मे ऐसा नही है। आइन्स्टाइन के सापेक्षता और लिमिटिंग स्पीड के सिद्धांतो से हम जानते है कि दोनो पिंडों के बीच गुरुत्वाकर्षण का बल लगना उस समय से पहले प्रारंभ नही हो पाएगा, जितना समय उन दोनो पिंडो के बीच मे प्रकाश को उसके निर्वात् मे चलने की गति से चल कर तय करने मे लगेगा। इसी प्रकार उनमे से एक पिंड को हटाने पर भी दूसरे पिंड पर उतने समय तक गुरुत्वाकर्षण बल लगता रहेगा जितना समय उन दोनो पिंडो के बीच मे प्रकाश को निर्वात् मे चलने की गति से चलने पर लगता है।
पृथ्वी अपने और सूर्य के बीच गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है। यदि हम किसी प्रकार सूर्य को नष्ट कर दे तब भी पृथ्वी 500 सैकेंड तक उस अस्तित्वहीन सूर्य के चारो ओर पूर्ववत चक्कर लगाती रहेगी। इतना समय सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को प्रकाश - या किसी अन्य विद्युतचुंबकीय तरंग - को तय करने मे लगता है। इस समय के बाद पृथ्वी अपनी गति की टैन्जैन्ट दिशा मे अंतरिक्ष मे उड़ जाएगी। वैसे, देखा जाए तो, दो पिंडो के बीच मे गुरुत्वाकर्षण बल नही लगता है वरन् द्रव्यमान के कारण स्पेस-टाइम के कर्वेचर मे अंतर आ जाता है। इस कर्व्ड स्पेस-टाइम के कारण हमे कोई सीधी जाती हुई चीज घूमती हुई प्रतीत होती है। लेकिन यह अन्य विचार का विषय है - अभी यहां इसका महत्व नही है।
इसके अतिरिक्त गुरुत्वाकर्षण बल क्षेत्र भी क्वान्टम नियमो से निर्धारित हो सकता है और यह भी अनिश्चितता आदि नियमो से निर्धारित हो सकता है। तो वास्तविकता यह है कि गुरुत्वाकर्षण का नियम भी सापेक्षता और क्वान्टम नियमो से निर्धारित होता है। लेकिन क्योकि रोजमर्रा के कार्यो के लिए हमे इन नियमो की आवश्यकता नही होती है इसलिए हम गुरुत्वाकर्षण को स्थूल रूप मे क्लासिकल फिजिक्स से भी समझ सकते है और इस फिजिक्स को अपने प्रयोग मे ला सकते है।
हम अपनी बातचीत मे इतना कहना पर्याप्त समझते है कि दो पिंडो के बीच मे गुरुत्वाकर्षण बल लगता है।
हम साधारण गणित मे संख्याओ को जोड़ते है। लेकिन सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार हम सापेक्ष गतियो को इस प्रकार नही जोड़ सकते है। वहां 3 लाख + 3 लाख = 3 लाख ही होगा - 6 लाख नही। गतियो को जोड़ने के नियम सामान्य नियमो से अलग होते है लेकिन दोनो प्रकार के नियमो से प्राप्त परिणामो के अन्तर बहुत अधिक गतियो पर ही ध्यान देने योग्य हो पाते है।
हम यूक्लिडियन ज्यामिति मे पढ़ते है कि किसी त्रिभुज के अंदर के तीनो कोणो का योग 180 डिग्री होगा लेकिन किसी कर्व्ड सतह - जैसे पृथ्वी की सतह - के लिए यह सही नही है। उस पर खीचे गए किसी त्रिभुज के अंदर के कोणो का योग 180 डिग्री से अधिक होगा। लेकिन यदि पृथ्वी की सतह के क्षेत्रफल की अपेक्षा वह त्रिभुज बहुत छोटा है तो हम व्यावहारिक रूप से उसे एक सीधी सतह पर खीचे हुए त्रिभुज के रूप मे मान सकते है और उस पर यूक्लीडियन ज्यामिति के नियम लगा सकते है। इसी प्रकार हम 150 किलोमीटर प्रति घंटा + 100 किलोमीटर प्रति घंटा जोड़ कर निष्कर्ष 250 किलोमीटर प्रति घंटा ले आते है जो वास्तव मे पूरा सही नही है लेकिन व्यावहारिक रूप से ठीक है।
किसी वस्तु की लंबाई और उसका द्रव्यमान उसकी गति पर निर्भर करता है। लेकिन आम गतियो पर यह अंतर बहुत कम होता है - यह केवल प्रकाश की गति के सापेक्ष गतियो पर ही जानने योग्य हो पाता है। इसलिए हम रोजमर्रा के कार्यो मे इस अन्तर की उपेक्षा कर देते है और वस्तु के द्रव्यमान को आम रूप से ही नापते है। लेकिन मूलभूत कणो के संसार मे - जहां पर उनकी गति प्रकाश की गति के तुल्य होती है - यह चीज बहुत मायने रखती है। यही बात समय के साथ भी है। गति अथवा/और गुरुत्वाकर्षण बढ़ने के साथ समय धीमे चलने लगता है, लेकिन यह बात भी अधिक गतियो और अधिक गुरुत्वाकर्षण पर ही ध्यान मे आने योग्य हो पाती है, इसलिए हम रोजमर्रा के जीवन मे इनकी उपेक्षा कर देते है। लेकिन सत्य यह है कि इन बातो का अस्तित्व है और जहां पर उनकी आवश्यकता होती है हम वहां पर उनकी उपेक्षा नही कर सकते है।
यदि हम कण भौतिकी अथवा कृत्रिम उपग्रहो के संचालन मे इसकी उपेक्षा करेगे तो हम बहुत गलत परिणामो पर पहुचेगे।
यह एक निश्चित नियम है कि किसी चालक के सिरो के बीच इतना विभवान्तर लगाने पर चालक के प्रतिरोध के आधार पर उसमे इतनी विद्युत धारा बहेगी। लेकिन कणो के स्तर पर यह बात पूरी तरह सही नही है। उस चालक के सभी इलेक्ट्रॉन इस नियम के अनुसार गति नही करेगे। वह क्वान्टम नियमो के अनुसार गति करेगे।
लेकिन क्योकि कुल मिला कर धारा का लगभग वही मान आता है जो विद्युत धारा के क्लासिकल फिजिक्स के नियमो के अनुसार होता है, इसलिए हम उन क्वान्टम प्रभावो की उपेक्षा कर देते है और अपने रोजमर्रा के जीवन मे क्लासिकल फिजिक्स से काम चलाते है क्योकि वह आसान है।
ये सारे उदाहरण हमे यह दिखाते है कि हमारा यह विश्व बड़े स्तर पर एक नियमितता का पालन करता हुआ दिखाई पड़ता है, यह निश्चित नियमो के अनुसार चलता हुआ दिखाई पड़ता है, लेकिन सूक्ष्म स्तर पर वास्तव मे उन नियमो मे अनिश्चितताए और अनियमितताए होती है।
हम आगे देखेगे कि किस प्रकार हमारा ब्रह्माण्ड बड़े स्तर पर एक व्यवस्थित स्थान दिखाई पड़ते हुए भी वास्तव मे अव्यवस्था का पुट रखता है। हम आगे देखेगे कि ऊपर दिए गए उदाहरणो का इस ब्रह्माण्ड की व्यवस्था और अव्यवस्था के इस विषय को समझने और सही निष्कर्षो तक पहुचने मे क्या महत्व है।
क्रमशः - मानव-समाज की निश्चितताओ, अनिश्चितताओ, नियमितताओ, अनियमितताओ, व्यवस्थाओ और अव्यवस्थाओ को देखना और इस लेख-माला का निष्कर्ष।