अनंत प्यास
जब हम दर्शन पढ़ते है, विज्ञान पढ़ते है, साहित्य पढ़ते है, इतिहास पढ़ते है, नई पुरानी राजनीतिक विचारधाराएं पढ़ते है तब भी पढ़ने, जानने की प्यास खत्म क्यों नहीं होती ?
ऐसा लगता है कि अभी तो कुछ जाना समझा ही नहीं ! जो जाना उसे, और बचे इन सबको याद रख पाना और भी कठिन अभ्यास है। ऐसा क्यों होता है कि ज्ञान की प्यास हमेशा दहकती रहती है, बुझती नहीं ?
शायद इसकी जड़ें हमारी जिज्ञासा में हैं, जो केवल सतही जानकारी से संतुष्ट नहीं होती। जब हम दर्शन पढ़ते हैं, तो यह नए प्रश्नों को जन्म देता है। जब हम विज्ञान में गहराई से झांकते हैं, तो ब्रह्मांड की जटिलता हमारी समझ की सीमाओं को चुनौती देती है। साहित्य हमें उन भावनाओं और अनुभूतियों से परिचित कराता है, जिनका हम पहले कभी सामना नहीं कर पाए थे। इतिहास हमें बताता है कि हमने कितनी गलतिया दोहराईं, और फिर भी हम सीखने की प्रक्रिया में ही हैं।
यह भी संभव है कि हमारा मस्तिष्क एक अबूझ पहेली की तरह बना हो, जो पूर्णता की चाह तो रखता है, लेकिन कभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो सकता। हर नया ज्ञान एक दरवाजा खोलता है, लेकिन उसी के साथ अनगिनत अन्य दरवाजों की झलक मिलती है, जो अभी खुले नहीं हैं। इसलिए हर पढ़ा हुआ शब्द, हर सुनी हुई बात, हर सोचा हुआ विचार सिर्फ एक यात्रा का पड़ाव होता है, न कि अंतिम गंतव्य।
याद रखने की कठिनाई भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। ज्ञान कोई स्थिर चीज़ नहीं है जिसे संचित कर कहीं रख दिया जाए। यह निरंतर बहता हुआ एक प्रवाह है, जो जितना हमारे भीतर आता है, उतना ही हमारे भीतर से नया रूप ले कर बाहर भी जाता है। इसी कारण हम हर बार कुछ नया सीखने पर पुराने ज्ञान को नए सिरे से देखने लगते हैं।
शायद यही वह कारण है कि हमारी प्यास कभी नहीं बुझती। क्योंकि जिस दिन यह बुझ जाएगी, उस दिन शायद हमारी चेतना भी ठहर जाएगी, और जीवन की यह रोशनी बुझने जैसी हो जाएगी। ज्ञान का असली सौंदर्य इसी अनंत प्यास में है।