जीव-जगत के विषय मे ज्ञान
जीवो मे प्रजनन :
वृक्ष भी योनिज जीव हैं और सृष्टि में काफी बाद में पशुओं और मनुष्यों की उत्पत्ति हुई और मनुष्यों की उत्पत्ति मैथुनी प्रजनन से ही हुई है। इसके लिए कोई असामान्य प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती है। ऐसा मानना सृष्टि-नियमों के विरुद्ध होगा। प्रकृति के किसी भी स्तर पर कोई भी कार्य 'यों ही' अथवा असामान्य रूप से भिन्न प्रकार का नहीं होता है अपितु वह पिछले की सरणि में, उसके अनुक्रम में ही होता है।
यह कथन आम धार्मिक और पांथिक मान्यताओं के विरुद्ध है जो यह कहती हैं कि इस सृष्टि के प्रारम्भ में ही सारे जीव-जन्तु और मनुष्य आज के ही रूप में ईश्वर द्वारा अमैथुनी सृष्टि के रूप में रच दिए गए और जिनके अनुसार तब से अब तक जीवों के रूप में कोई परिवर्तन नहीं आया है। विभिन्न धार्मिक मत इस विषय में उत्पत्ति के विभिन्न प्रकार बताते हैं लेकिन वह सब ईश्वर द्वारा अमैथुनी सृष्टि द्वारा मनुष्य की उत्पत्ति की बात करते हैं। उपनिषद् आदि के ऋषियों ने मनुष्य की उत्पत्ति के इस क्रम का जो निरूपण किया है, उसकी आधुनिक युग में भ्रूण विज्ञान के महान विद्वानों और विज्ञानियों ने व्याख्या की है और ये भी वास्तव में ऋषि हैं। हमें उनसे सीखना चाहिए। आधुनिक युग में आगे बढ़ने के लिए धर्म के आधार पर वैज्ञानिक ज्ञान का विरोध करना शोभा नहीं देता है।
योनिज जीव वह कहलाते हैं जो योनि - अर्थात् किसी शरीर - से उत्पन्न होते हैं। सभी वनस्पतियां और जन्तु इसी श्रेणी में आते हैं। अयोनिज उत्पत्ति में बिना शरीर के जीवन की उत्पत्ति की धारणा है जो देवताओं, पौराणिक कथाओं के चरित्रों और पसीने एवं गंदगी से जीवों की उत्पत्ति की धारणा है। लेकिन यह धारणा एक कल्पना ही है, इस प्रकार जीवन की उत्पत्ति नहीं होती है। पृथ्वी पर जीवन किस प्रकार आरम्भ हुआ यह एक अन्य विचार का विषय है लेकिन इस प्रकार पसीने और गंदगी से किसी भी युग में जीवन की उत्पत्ति नहीं हुई है। जीवन की उत्पत्ति के प्रारम्भ में अजीवन से जीवन की उत्पत्ति अवश्य हुई, तब जीवन के सरल अणुओं की उत्पत्ति हुई और उनसे अलैंगिक प्रजनन भी हुआ, लेकिन इस समय आज की परिस्थितियों में प्राकृतिक रूप से जीवन से ही जीवन की उत्पत्ति संभव है। हां, मनुष्य द्वारा प्रयोगशालाओं में इसके विपरीत भी किए जाने की संभावना है।
निश्चित रूप से वनस्पतियां भी जीव होती हैं। वे जीवित होती हैं और जंतुओं के समान ही कोशिकाओं से बनी होती हैं। हां, फंगस अर्थात् फफूंदी की कोशिकाओं में आम कोशिकाओं से कुछ अंतर होता है और उन्हें वनस्पति-जगत एवं जन्तु-जगत से अलग एक अलग किंगडम 'फंजी' में रखा जाता है। वनस्पति और जन्तु कोशिका में सैल्यूलोज की कोशिका भित्ति और क्लोरोप्लास्ट जैसे कुछ अंतर होते हैं। जन्तुओं और वनस्पतियों में प्रजनन के ये प्रकार होते हैं...
१. लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction) - मोटे तौर पर इसे मैथुनी प्रजनन भी कह सकते हैं। इसके लिए किसी जीव-जाति के दो सदस्य चाहिए होते हैं। ऐसा होने से दो प्राणियों के जेनेटिक मैटेरियल परस्पर मिलते हैं और एक बेहतर संतान उत्पन्न होने की संभावना होती है। दो प्राणियों के जेनेटिक मैटेरियल मिलने की इस क्रिया को निषेचन (Fertilization) बोलते हैं। इस प्रकार से स्तनपायी प्राणी, चिड़ियां, उभयचर, अनेक मछलियां और अनेक वनस्पतियां प्रजनन करती हैं।
२. अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction) - इसे मोटे तौर पर अमैथुनी प्रजनन भी कह सकते हैं। इसमें किसी एक जीव द्वारा ही संतान उत्पन्न की जाती है। इसमें अधिकांश अकशेरुकी (Invertebrates) - बिना रीढ़ वाले - और कुछ कशेरुकी (Vertebrates) - रीढ़ वाले - प्राणी आते हैं। यह निम्न प्रकार से होता है -
क. कलिकाकरण (Budding) - जीव के शरीर से नए जीव कलिकाओं के रूप में उगते हैं जो टूट कर नए जीव बन जाते हैं। उदाहरण के लिए हाइड्रा, स्पंज और मूंगे (कोरल) जैसे जन्तु और यीस्ट जैसी अनेक वनस्पतियां।
ख. टूट कर (Fragmentation) - पितृ या मातृ शरीर कुछ टुकड़ों में टूट जाता है और प्रत्येक भाग एक नए जीव के रूप में विकसित हो जाता है। उदाहरण के लिए - बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोन्स, चपटे कृमि (फ्लैटवर्म्स), स्टारफिश, प्लैनेरियन्स आदि।
ग. पुनर्जनन (Regeneration) - यह भी एक प्रकार से टूट कर प्रजनन होने का ही रूप है। इसमें शरीर का कोई भाग कट जाने पर उससे नया जीव बन जाता है जैसे केंचुआ और कुछ वनस्पतियां।
घ. कुमारी जनन (Parthenogenesis) - इसमें प्राणी के अंदर बिना निषेचन के अंडे बनते हैं। इसमें कुछ कीट - जैसे एफिड्स, ड्रोन मधुमक्खी, चींटियां, दीमक - कुछ सरीसृप जैसे कोमोडो ड्रैगन और कुछ मछलियां और उभयचर आते हैं।
च. वनस्पतियां कुछ अन्य प्रकार से भी अलैंगिक प्रजनन करती हैं। जैसे उनमें कुछ पौधों की पत्तियों से नए पौधे निकल आते हैं अथवा शाखाओं से नई जड़ें निकल कर नए पेड़ बन जाते हैं।
जन्तुओं में लैंगिक और अलैंगिक प्रजनन द्वारा संतान विभिन्न प्रकार से उत्पन्न होती है। इन विभिन्न प्रकार से उत्पन्न होने वाले प्राणी इन रूपों में बांटे जा सकते हैं...
१. जरायुज (Viviparous) - ऐसे जीव वह होते हैं जिनको मां के शरीर के अंदर जरायु (Placenta) से पोषण मिलता है और जो एक विकसित शिशु के रूप में मां के शरीर से बाहर आते हैं।
२. अण्डज (Oviparous) - इस प्रकार के जीवों में माता द्वारा अण्डे दिए जाते हैं और उनमें मां के शरीर के बाहर अण्डों के अंदर संतान विकसित होती है जो विकसित होने पर अण्डों से बाहर निकल आती है।
३. अण्डअर्धजरायुज (Ovoviviparous) - इसमें भ्रूण अण्डे के अंदर विकसित होता है लेकिन वह अण्डे मां के शरीर के अंदर ही रहते हैं। शिशुओं के अण्डों के अंदर विकसित हो जाने पर वह अण्डों से बाहर निकल आते हैं और तब मां उन्हें जन्म देती है। इसमें शार्क मछली की कुछ प्रजातियां, गार्टनर नाग, एक प्रकार की मछली स्केट्स, कुछ उभयचर और सरीसृप आते हैं।
कुछ लोग स्वेदज और उद्भिज्ज में भी प्रजनन या प्राणियों को बांटते हैं। इस प्रकार के जीवों को अयोनिज श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन यह असत्य है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा, स्वेद अर्थात् पसीने और गंदगी से कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है। यह उन स्थानों पर उपस्थित पहले के जीवों द्वारा दिए गए अण्डों और स्पोर्स से ही उत्पन्न होते हैं। इस विषय पर वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त निष्कर्षों पर मैंने पांच कड़ियों की एक श्रृंखला लिखी थी। उसमें ये बातें विस्तार से आई थीं। आगे उद्भिज्ज का अर्थ है - जमीन से उत्पन्न होने वाले। पौधे ऐसा करते हैं लेकिन यह लैंगिक या अलैंगिक प्रजनन के बाद की स्थिति है। लैंगिक अथवा अलैंगिक प्रजनन से बीज अथवा स्पोर्स बनते हैं जो जमीन पर पड़ कर अंकुरित हो जाते हैं। इन्हें जमीन स्वयं से जन्म नहीं देती है।
प्रजनन के ये विभिन्न प्रकार जीवन के विकास-क्रम में विभिन्न समयों में अस्तित्व में आए। विकास-क्रम के इस इतिहास को जानना बहुत रोचक है। यह हमें जीवन के बने रहने की विधियों के विषय में बताता है। इसके बिना यहां जीवन कायम नहीं रह पाता। मनुष्य इस विकास-क्रम में बहुत बाद की स्थिति है यद्यपि मनुष्य की उत्पत्ति के बाद भी अनेक जीव-जातियां उत्पन्न हुई हैं। मनुष्य जरायुज है और लैंगिक प्रजनन करता है। वैसे, प्रयोगशाला में मनुष्य और अन्य प्राणियों को क्लोनिंग विधि से अलैंगिक प्रजनन द्वारा बनाया जा सकता है। इसमें एक ही जीव की किसी कोशिका से नया जीव बनाया जा सकता है।
मानव-जाति के इतिहास में प्राकृतिक रूप से मानव का प्रजनन कभी भी अलैंगिक या अमैथुनी रूप से नहीं हुआ। उसकी उत्पत्ति कभी भी अमैथुनी या अयोनिज रूप से नहीं हुई। जिन निकट के प्राणियों से इसका विकास हुआ है, वे लैंगिक प्रजनन ही करते थे। इसलिए आदरणीय आचार्य जी का यह कथन वैज्ञानिक रूप से बिल्कुल सत्य है कि किसी भी काल-खण्ड में मनुष्य की उत्पत्ति अमैथुनी प्रजनन से नहीं हुई है। आगे बात केवल यहां पर आकर समाप्त होती है कि ज्ञान के इन क्षेत्रों में हम वैज्ञानिक निष्कर्षों को मानें अथवा धार्मिक और पांथिक मान्यताओं को। यह हमारे ऊपर है कि हम अपने विचारों को क्या दिशा देना चाहते हैं और अपनी विचार सरणि कैसी रखना चाहते हैं। यदि कुछ व्यक्ति इस वैज्ञानिक विचारधारा के व्यक्तियों को 'बंदर की औलाद' या 'पशुओं की मैथुनी औलाद' कह कर व्यंग्य करना चाहते हैं तो यह केवल उनकी सार्थक और प्रामाणिक विचारहीनता और वाणी के असंयम को ही दिखाता है। वह केवल एक विचारधारा को मानने के मोह में वैज्ञानिक तथ्यों की उपेक्षा करने को ही दिखाता है। हां, हम निम्न श्रेणी के जीवों से ही विकसित हुए हैं लेकिन यह किसी व्यंग्य का विषय नहीं है। यह सत्य को समझने का विषय है।