तथ्य-विवेचना
भाग 1...
एक विचार, एक प्रश्न
इस लेख का उद्देश्य एक विचार की, एक मान्यता की, तथ्यात्मक और वैज्ञानिक विवेचना करना है। इस विवेचना का उद्देश्य शैक्षणिक या वैचारिक है। बहुत समय से दार्शनिक और वैज्ञानिक विभिन्न विचारों की विवेचना करते आए हैं - यह भी वैसा ही एक प्रयास है। पढ़ने में सुविधा की दृष्टि से मैं अपने इस लेख को कुछ भागों में बांट कर यहां दूंगा।
विदेशी दर्शनों के विषय में मुझे ज्ञान नहीं है लेकिन मेरे ज्ञान के अनुसार प्राचीन भारतीय दर्शन में एक मान्यता है कि हमारा ब्रह्माण्ड पूर्ण रूप से व्यवस्थित है। यहां हर कार्य समुचित रूप से और निर्धारित नियमों के अनुसार होता है, यहां कोई अनियमितता नहीं होती है, यहां कोई कमी नहीं है। यह कहा जाता है कि हमारे शरीर जैसा जटिल यंत्र पूरी तरह पूर्ण है - इसमें कोई कमी नहीं है। इस आधार पर यह कहा जाता है कि हमारे ब्रह्माण्ड जैसी पूर्ण व्यवस्थित चीज कोई सोचने-समझने वाली शक्ति ही बना सकती है। कोई बुद्धिमान व्यवस्थापक ही इतनी त्रुटिहीन और पूर्ण व्यवस्था उत्पन्न कर सकता है।
क्या होता है पूर्ण व्यवस्थित होना ? किसी चीज का पूर्ण व्यवस्थित होना उसे कहते हैं जब कहीं कोई अनिश्चितता न हो, कहीं कोई अव्यवस्था न हो, कहीं कोई अनियमितता न हो, कहीं कोई कमी न हो, हर कार्य सुचारु रूप से हो रहा हो और हर स्थान पर 'रामराज्य' हो। क्या ब्रह्माण्ड में वास्तव में ऐसा है? मैं इस प्रश्न को आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से देखने का प्रयत्न करूंगा। आइए, हम इसे देखें...
ब्रह्माण्ड के अधिकांश कार्य कुछ निर्धारित नियमों से संचालित होते हैं। इन नियमों को सार्वभौमिक प्राकृतिक नियम (Universal Natural Laws) कहते हैं। यदि ये नियम न हों तो ब्रह्माण्ड एक विनाश - एक Chaos - में चला जाएगा और अंततः वह अस्तित्व में ही नहीं रह पाएगा। ये नियम बहुत सारे होते हैं। इनके विषय में हम विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में पढ़ते हैं। उदाहरण के लिए गुरुत्वाकर्षण का नियम या क्रिया-प्रतिक्रिया का नियम या जड़त्व का नियम या विद्युत बल क्षेत्र का नियम, चुम्बकत्व का नियम या ब्रह्माण्ड के चार मूलभूत बलों का नियम या द्रवों के बहने का नियम या ध्वनि का नियम या प्रकाश के नियम, लिमिटिंग स्पीड का नियम, सापेक्षता का नियम आदि उन निर्धारित नियमों में से कुछ नियम हैं। ये नियम पूरे ब्रह्माण्ड में एक से ही होते हैं। यदि गुरुत्वाकर्षण नियतांक का मान यहां 6.67428 × 10-¹¹ न्यूटन मीटर² प्रति किलोग्राम² है, इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान 9.10938356 × 10-³¹ किलोग्राम और उसका आवेश 1.602 × 10-¹⁹ कूलम्ब है, तो अरबों प्रकाश वर्ष दूर और अरबों वर्ष आगे और पीछे भी यह इतना ही रहेगा। इन नियमों के रूप में हमें ब्रह्माण्ड में एक व्यवस्था दिखाई पड़ती है।
लेकिन क्या ये नियम वास्तव में पूरी तरह व्यवस्थित हैं ? क्या संसार में हर बात पूरी तरह सुव्यवस्था - Complete and Well Order - में है ? क्या हर चीज पूर्ण है? क्या संसार में अव्यवस्था को दिखाने वाले भी कुछ नियम हो सकते हैं ?
क्रमशः - ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम
#ब्रह्माण्डमेंव्यवस्था